Friday, June 25, 2010

विफलता: शोध की मंजिलेंजीवन विफलताओं से भरा है,सफलताएँ जब कभी आयीं निकट,दूर धकेला है उन्हें निजमार्ग से।तो क्या वह मुर्खता थी?नहीं।सफलता और विफलता की परिभाषाएँ भिन्न हैं मेरी।इतिहास से पूछो कि वर्षो पूर्व बन नहीं सकता था प्रधानमंत्री क्या?किन्तु मुझ क्रान्तिशोधक को कुछ अन्य ही पथ मान्य थे, उद्दिष्ट थे,पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,पथ संघर्ष के सम्पूर्ण क्रांति के।जग जिन्हे कहता विफलता,थीं शोध की वे मंजिलें।मंजिलें वे अनगिनत हैंगन्तव्य भी अति दूर है,रुकना नहीं मुझको कहींअवरूद्ध जितना मार्ग होनिज कामना कुछ है नहींसब है समर्पित ईश को।तो विफलताओं पर तुष्ट हूँ अपनी,और यह विफल जीवनशत्-शत् धन्य होगा,यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों काकण्टकाकीर्ण मार्ग,यह कुछ सुगम बन जावे।(भारत रत्न, लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा यह कविता चण्डीगढ़ के कारावास के दिनों में 9 अगस्त, 1975 को लिखीं गयीं।

Friday, January 22, 2010

Kahaan gaya insaaf wo tera,kahaan pe ishwar rehta hai,
doodh bina bachcha marta hai,koi madira pita hai,
kahaan gaya insaaf wo tera,kahaan pe ishwar rehta hai.